डर
डर एक ऐसा मानसिक भाव है जो संसार के हर प्राणी के अंदर होता है। अब अगर पुरूषों की बात की जाए तो तो हम हर उस चीज़ से डरते है जिसको या जिसके बारे में हम जानते नहीं है। हमारा डर हमारी अज्ञानता और मानसिक कमजोरी का परिचायक होता है।
डर कई प्रकार के होते है -
1 . अकेले में डरना
2 .बड़ों से डरना।
3 . नया काम करने से डरना।
4 . लोगों का सामना करने से डरना।
5 . अपने सामान व पैसे के चले जाने का डर।
6 . भूत व आत्माओं का डर।
7 . जीवन में कुछ न बन पाने का डर।
8 . अपनी कमियों को छुपाने का डर।
9 . सामाजिक मान्यतओं का डर।
10 . धार्मिक मान्यताओं का डर।
11 . ईश्वर का डर।
12 . मौत का डर , आदि।
अब प्रश्न यह उठता है की हम डरते क्यों है -
2 . हम अपने आप को पूर्ण नहीं बना पते है।
3 . हम सत्य को स्वीकार नही करना चाहते है।
4 . अपने आप को परीस्थितियों के हिसाब से बदल नही पते है।
5 . हम अपनी अज्ञानता को मिटाने का प्रयास नई करते है
6 . हम अपनी सोच को सकारात्मक नही रखते है।
अब हमें करना क्या है ? बड़ा कठिन काम लगता है पर है नहीं। थोड़ा रुको ,जीवन को थोड़ा समझों ,दिमाग को थोड़ा संतुलित करो और ध्यान से सोचो की -
तुम इस संसार के सबसे बुद्धिमान प्राणी हो और फिर भी डरते हो। तुम्हारे डर वजह सिर्फ दो है -
1 . कुछ न मिलने का डर।
2 . सब कुछ चले जाने का डर।
तो अब जरा यह भी सोच लो की आज जो भी तुम्हारे पास है वह तुम्हारी खुद की कीमत से ज़्यादा नही है।
अब जब तुम ही नही रहोगे तो तुम्हारी चीजों के जाने के डर का क्या फ़ायदा। यह प्रकृति का नियम है की हर चीज़ की आयु होती है तो उसके बाद उसके जाने का डर किस काम का।
तो समाधान आपके सामने है। अब डर नहीं।,खुशहाल जीवन आपका इन्तज़ार कर रहा है।
इसका पूरा आनंद लें।
लेखक- शंकर शर्मा
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